वर्तमान संदर्भ में गुटनिपरेक्षता की प्रासंगिकता
डाॅ. अर्चना श्रीवास्तव, कामना देवी साहूगुट-निरपेक्ष आंदोलन आज विश्व में प्राभावोत्पाद विचारधारा का प्रतिपादन करता है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति एक विचारपूर्ण अवधारणा के परिणामस्वरूप हुई थी जिसका उद्देश्य नवोदित राष्ट्रों की स्वाधीनता की रक्षा करना था तथा युद्ध की संभावनाओं को कम करना था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया था- सोवियंत संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका उस समय एशिया एवं अफ्रीका के नये राष्ट्रों के सम्मुख अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने की समस्या थी जिसके परिणामस्वरूप गुट निरपेक्षता का प्रादुर्भाव हुआ। एशिया एवं अफ्रीका के नए राष्ट्रों ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करते हुए दोनों गुटों की राजनीति से अलग कर दोनों गुटों से समान रूप से आर्थिक एवं सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्ष नीति को अपनी विदेश नीति का आधार बनाया। इसके बाद एशिया अफ्रीका एवं लातीनी अमेरिका के अनेक देशों ने गुट-निरपेक्ष नीति ने अपने विचार प्रकट किये। वर्तमान काल में 120 देश गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य हैं। अमरीकी गुट एशिया के नये राष्ट्रों पर अनेकों प्रकार से दबाव डाल रहा था ताकि वे उसके गुट में शामिल हो जाए लेकिन एशिया के अधिकांश राष्ट्रों पर पश्चिम देशों की भाँति गुटबन्दी में विश्वास नहीं करते थे। वे सोवियत साम्यवाद और अमरीकी पूंजीवाद दोनों को अस्वीकार करते थे। वे अपने आपको किसी वाद के साथ सम्बन्ध नहीं करना चाहते थे और उनका विश्वास था कि उनके उद्देश्य प्रदेश ‘तीसरी शक्ति’ हो सकते हैं जो गुटों के विभाजन को अधिक जटिल संतुलन में विभक्त करके अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में सहायक हो सकते हैं। गुटों से अलग रहने की नीति अर्थात् गुटनिरपेक्षवाद एशिया के नवजागरण की प्रमुख विशेषता थी। सन् 1947 स्वतंत्रता के उपरांत भारत ने इस नीति का पालन करना शुरू किया। उसके बाद एशिया के अनेक देशों ने इस नीति में अपने विचार व्यक्त किये। जैसे-जैसे अफ्रीकी देश स्वतंत्र होते हैं वैसे-वैसे उन्होंने भी इस नीति का आलम्बन करना शुरू किया। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्त्र के राष्ट्रपति नासिर तथा मुगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने ‘तीसरी शक्ति’ की इस धारणा को मजबूत बनाया। वस्तुतः शीत युद्ध के राजनीतिक धु्रवीकरण ने गुटनिरपेक्ष की समझ तैयार करने में एक उत्प्रेरक कार्य किया। लम्बे औपनिवेशिक अधिपत्य से स्वतंत्र होने के लम्बे संघर्ष के बाद किसी दूसरे अधिपत्य को स्वीकार कर लेना नये राष्ट्रों के लिए एक ऐसी भूमिका की तलाश में थे जो उनके आत्मसम्मान और क्षमता के अनुरूप हो। क्षमता स्तर पर किसी एक राष्ट्र के लिए ऐसी स्वतंत्र भूमिका अर्जित कर पाना एक कठिन प्रयास होता। जिसकी संभावनाएं भी अत्यधिक संदिग्ध बनती। अतः आत्मसम्मान की एक अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका के लिए सामूहिक पहल न सिर्फ वांछित थी, अपितु आवश्यक थी। स्वतंत्रता और सामूहिकता की इस मानसिकता ने गुट निरपेक्षता की वैचारिक और राजनीतिक नींव रखी। इस प्रक्रिया को तात्कालिक राजनीतिक वातावरण ने गति प्रदान की।