भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकार का विमर्श
तनु श्री द्ववेदी, डॉ. रमेश चन्द्र मिश्रा- General Medicine
प्राचीन युग से वर्तमान युग तक नारी के संघर्ष की गाथा बहुत लंबी है कहा जाता है कि 1000 वर्षों से पराधीनता में रहने बाली एकमात्र जाति” नारी “ही है। इसी कारण स्त्री को अंतिम उपनिवेश की भी संज्ञा दी जाती रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद स्त्री और पुरुष को समान दर्जा देता है किंतु आंकड़ों से स्पष्ट है कि यह स्थिति कागजों तक ही सीमित है। यदि हमारे देश में घटित होने वाले महिलाओं के प्रति अपराधों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि प्रति 6 मिनट पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़, सार्वजनिक अपमान, हत्या का प्रयास, बलात्कार, उत्पीड़न और अश्लीलता जैसी घटनाएं घटती हैं। भारत में विभिन्न प्रदेशों की स्थिति को देखें तो महाराष्ट्र में सर्वाधिक फिर मध्यप्रदेश में, आंध्र प्रदेश में, राजस्थान में महिलाओं के प्रति ज्यादा अपराध घटित होते हैं। ऐसे अपराधों को रोकने के लिए कठोर से कठोर कानून निर्मित किए जा रहे हैं, किंतु जब तक पुरुषों तथा समाज की मानसिकता में सुधार नहीं आएगा ऐसे कानूनों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा क्योंकि समस्याओं का जन्म समाज से होता है। भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं को बहुत से संवैधानिक एवं विधिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, इसके साथ ही इन अधिकारों के उचित क्रियान्वयन स्वयं महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने हेतु विभिन्न आयोगों की स्थापना की गई है|